आईना पर शायरी ऑनलाइन पढ़े | Aaina par Shayari PDF Download
Aaina par Shayari
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आईना-ए-जिंदगी में खुद का अक्स देखते रहे
ढूंढते रहे खुद को खुद में और यूं ही खोते रहे
कभी देखा इस आइने में खुद को कीर-सा हमने
कभी देखा खुद को अमीर-सा हमनेबताया आईने ने हमें सच, हमारी सच्ची तस्वीर क्या है
इंसा वही जो ठोकर खाकर संभाल ले खुद को
एक दिन बताया आईने ने हमें, हम न समझे दुनिया का खुदा खुद को
कहा टटोलकर देख दिल अपना, और जब देखा हमने खुद कोपाया जो कुछ भी है, सब तो दिया खुदा तेरा ही है
आईने ने दिखाया सच का आईना हमको
रहो जमींपर न उड़ो आसमां पर परिंदा बनकर
क्यूंकि आसमां है परिंदों की जागीरआईने ने कहा इंसा तू तो हार जाता सिर्फ एक हार से
फिर भी अहंकार और घमंड न छोड़े है तू और,
मान लेता है खुद को खुदा
जीवन में कभी न कभी, खुदा, खुद कोशुक्रगुजार हूं आर्ईना बनाने वाले का
जिसने भरम तोड़ा है खुद को खुदा मानने वालों का
जब भी सवार हो भूत घमंड का इंसा तुझपे
देख लेना आईना एक बार अपने अक्स को निहार लेनाआईना देखते हैँ वो छुप छुप के बार-बार,
कभी जुल्फेँ बिगाड़ कर कभी जुल्फेँ सँवार कर।मेरे ऐबों को तलाशना बंद कर दिया है लोगों ने,
मैंने तोहफ़े में उन्हें जब से आईना दे दिया है।तरस गये आपके दीदार को,
दिल फिर भी आपका इंतज़ार करता है,
हमसे अच्छा तो आपके घर का आईना है,
जो हर रोज़ आपका दीदार करता है।न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगामैं तो फना हो गया उसकी एक झलक देखकर,
ना जाने हर रोज आईने पर क्या गुजरती होगी।वो कहते हैं हम उनकी झूठी तारीफ़ करते हैं,
ऐ ख़ुदा एक दिन आईने को भी ज़ुबान दे दे।तेरी आँखों में जब से मैंने अपना अक्स देखा है,
मेरे चेहरे को कोई आइना अच्छा नहीं लगता।अन्दाज अपना देखते हैं आइने में वो,
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो।पूछते हैं मुझसे की शायरी लिखते हो क्यों,
लगता है जैसे आईना देखा नहीं कभी।सँवरती है वो देखकर आईना
सँवर जाए तो, आईना देखता हैआईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।आईने में वो अपनी अदा देख रहे हैं,
मर जाये की जी जाये कोई उनकी बला से।आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर में जानता हैं कोई।किरदार अपना पहले बनाने की बात क़र,
फिर आइना किसी को दिखाने की बात कर।ख्वाब का रिश्ता हकीकत से ना जोड़ा जाए,
आईना हैं इसे पत्थर से ना तोड़ा जाए।आईना कुछ नहीं नज़र का धोखा हैं,
नज़र वही आता हैं जो दिल में होता हैं।मैं आईना हूं टुटना मेरी फितरत हैं,
इसलिए पत्थरों से मुझे कोई गिला नहीं।आईने में दिखता है टूटा सा अक्स अपना,
जख्मों की चोट खाकर यूं चटक सा गया हूं।अब कैसे संभालू मैं अपने टूटे दिल के टुकड़े को,
अपने ही दिल के आईने में देखो बिखर सा गया हूं।आईना भी तुम्हे देख आहे भरता होगा,
इतना भी खुद को निहारा ना कीजिये।आइना कोई ऐसा बना दे ऐ खुदा जो,
इंसान का चेहरा नहीं, किरदार दिखा दे।आईना देख के बोले ये सँवरने वाले,
अब तो बे-मौत मरेंगे मेरे पर मरने वाले।प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं,
आईना देख के मुँह चूम लिया करते हैं।देखिएगा सँभल कर आईना
सामना आज है मुक़ाबिल कादेखना अच्छा नहीं ज़ानू पे रख कर आइना,
दोनों नाज़ुक हैं न रखियो आईने पर आइना।हमें माशूक़ को अपना बनाना तक नहीं आता,
बनाने वाले आईना बना लेते हैं पत्थर से।मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल केआईना हूं तेरा, क्यूं इतना कतरा रहे हो।
सच ही कहूंगा, क्यूं इतना घबरा रहे हो।।
शिक़ायत है, मुझे आईने से तुम्हारे।
तुम मुझसे मिलने आती हो, उससे मिलने के बाद।।आईने को भी खूबसूरत बना देगी,
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान।अपने इमान की हिफाजत खुद से हैं मुकमल,
रूह के मुआयने के लिए कोई आईना नहीं होता।झूठा है झूठ बात ये बोलेगा आईना,
आओ हमारे सामने हम सच बताएँगे।सब अपनी गरज़ के यार है तू दोस्ती की बात न कर,
वक्त बड़ा बेरहम है ये तुझे भी आईना दिखाएगा।आईना लेके जो भी आए हैं, हम भी उनका जमीर देखेंगे।
सब हैं तन्हा, सभी में खालीपन, आप किस किस की पीर देखेंगे।।आईना नज़र लगाना चाहे भी तो कैसे लगाए,
काजल लगाती है वो आईने में देखकर।हम आईना हैं आईना ही रहेंगे, फ़िक्र वो करें।
जिनकी शक्लो में कुछ और, दिल में कुछ और है।।आईना भी देखे तो देखता रहे तुम्हे,
खूबसूरती की वो मिसाल हो तुम।आईनों को ज़ंग लगा
अब मैं कैसा लगता हूँआईना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगर,
आईना इस पर है ख़ामोश कि क्या है मुझ में।जो रेज़ा रेज़ा नहीं दिल उसे नहीं कहते,
कहें न आईना उस को जो पारा-पारा नहीं।आइना देख कर तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई
~ गुलज़ारआईनों को ज़ंग लगा अब मैं कैसा लगता हूँ
~ जौन एलियाआइना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगर आइना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में
~ कृष्ण बिहारी नूरमिरी जगह कोई आईना रख लिया होता न जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या
~ ज़ेब ग़ौरीआइना देख कर वो ये समझे मिल गया हुस्न-ए-बे-मिसाल हमें
~ बेख़ुद देहलवीमुद्दतें गुज़रीं मुलाक़ात हुई थी तुम से फिर कोई और न आया नज़र आईने में
~ हनीफ़ कैफ़ीन देखना कभी आईना भूल कर देखो तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा
~ बेख़ुद देहलवीचाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो आइना झूट बोलता ही नहीं
~ कृष्ण बिहारी नूरमुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के
~ अमीर मीनाईदेखिएगा संभल कर आईना सामना आज है मुक़ाबिल का
~ रियाज़ ख़ैराबादीआईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
– मिर्ज़ा ग़ालिबआईना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
– गुलज़ारआईना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगर
आईना इस पर है ख़ामोश कि क्या है मुझ में
– कृष्ण बिहारी नूरजो रेज़ा रेज़ा नहीं दिल उसे नहीं कहते
कहें न आईना उस को जो पारा-पारा नहीं
– अहमद ज़फ़रकोई भूला हुआ चेहरा नज़र आए शायद
आईना ग़ौर से तू ने कभी देखा ही नहीं
– शकेब जलालीभूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई
आईना देखें तो चेहरे नज़र आते हैं कई
– फ़ुज़ैल जाफ़रीदेखना अच्छा नहीं ज़ानू पे रख कर आइना
दोनों नाज़ुक हैं न रखियो आईने पर आइना
– दाग़ देहलवीदूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए
सामने आइना रख लिया कीजिए
– ख़ुमार बाराबंकवीहमें माशूक़ को अपना बनाना तक नहीं आता
बनाने वाले आईना बना लेते हैं पत्थर से
– सफ़ी औरंगाबादीमैं तो ‘मुनीर’ आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में
– मुनीर नियाज़ी
मुद्दतें गुज़रीं मुलाक़ात हुई थी तुम से
फिर कोई और न आया नज़र आईने में
– हनीफ़ कैफ़ीआईना कुछ नहीं नज़र का धोखा है
नज़र वही आता हैं जो दिल में होता है
– अज्ञातआईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे
– मिर्ज़ा ग़ालिबज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई
– फ़िराक़ गोरखपुरीमिरी जगह कोई आईना रख लिया होता
न जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या
– ज़ेब ग़ौरीआइना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगर
आइना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में
– कृष्ण बिहारी नूर
ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
– नासिर काज़मीआइना देख कर वो ये समझे
मिल गया हुस्न-ए-बे-मिसाल हमें
– बेख़ुद देहलवीख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए
आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए
– मलिकज़ादा मंज़ूर अहमददिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है
यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं
– अंदलीब शादानीचाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो
आइना झूट बोलता ही नहीं
– कृष्ण बिहारी नूरपहले तो मेरी याद से आई हया उन्हें
फिर आइने में चूम लिया अपने-आप को
– शकेब जलाली
आइने से नज़र चुराते हैं
जब से अपना जवाब देखा है
– अमीर क़ज़लबाशमेरी नक़लें उतारने लगा है
आईने का बताओ क्या किया जाए
– तहज़ीब हाफ़ीआइना देख के फ़रमाते हैं
किस ग़ज़ब की है जवानी मेरी
– इम्दाद इमाम असरबे-साख़्ता बिखर गई जल्वों की काएनात
आईना टूट कर तिरी अंगड़ाई बन गया
– साग़र सिद्दीक़ीप्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं
आईना देख के मुँह चूम लिया करते हैं
– अहमद हुसैन माइलइक बार जो टूटे तो कभी जुड़ नहीं सकता
आईना नहीं दिल मगर आईना-नुमा है
– रज़ा हमदानी
आइना आइना तैरता कोई अक्स
और हर ख़्वाब में दूसरा ख़्वाब है
– अतीक़ुल्लाहहम ने देखा है रू-ब-रू उन के
आईना आईना नहीं होता
– इब्न-ए-मुफ़्तीवहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सके
आईना क्या मजाल तुझे मुँह दिखा सके
– ख़्वाजा मीर दर्दआईना कभी क़ाबिल-ए-दीदार न होवे
गर ख़ाक के साथ उस को सरोकार न होवे
– इश्क़ औरंगाबादीतुम्हारे संग-ए-तग़ाफ़ुल का क्यूँ करें शिकवा
इस आइने का मुक़द्दर ही टूटना होगा
– अब्दुल हफ़ीज़ नईमीकोई मुँह फेर लेता है तो ‘क़ासिर’ अब शिकायत क्या
तुझे किस ने कहा था आइने को तोड़ कर ले जा
– ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
मैं तिरे वास्ते आईना था
अपनी सूरत को तरस अब क्या है
– ग़ुलाम मुर्तज़ा राहीबनाया तोड़ के आईना आईना-ख़ाना
न देखी राह जो ख़ल्वत से अंजुमन की तरफ़
– नज़्म तबातबाईइस लिए कहते थे देखा मुँह लगाने का मज़ा
आईना अब आप का मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गया
– आग़ा शाएर क़ज़लबाशउन की यकताई का दावा मिट गया
आइने ने दूसरा पैदा किया
– हफ़ीज़ जौनपुरीआईना भला कब किसी को सच बता पाया है
जब भी देखो दायां तो बायां नज़र आया है
– अज्ञातसितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने
चराग़ और आइने को अपने वजूद का राज़-दाँ किया है
– ग़ुलाम हुसैन साजिददेखना पड़ती है ख़ुद ही अक्स की सूरत-गरी
आइना कैसे बताए आइने में कौन है
– अफ़ज़ल गौहर रावदेख आईना जो कहता है कि अल्लाह-रे मैं
उस का मैं देखने वाला हूँ ‘बक़ा’ वाह-रे मैं
– बक़ा उल्लाह ‘बक़ा’पत्थरो आओ कि नादिम हैं शबीहें ख़ुद पर
आइने अपनी जसारत की सज़ा चाहते हैं
– मुज़फ़्फ़र मुम्ताज़एक को दो कर दिखाए आइना
गर बनाएँ आहन-ए-शमशीर से
– ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | आईना पर शायरी ऑनलाइन पढ़े | Aaina par Shayari PDF Download |
| Category | Best Shayari PDF Books in Hindi |
| Language | हिंदी / Hindi |
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“हम वस्तुओं को जैसी हैं वैसे नहीं देखते हैं। हम उन्हें वैसे देखते हैं जैसे हम हैं।” ‐ टालमड
“We do not see things they are. We see them as we are.” ‐ Talmud
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