फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर ऑनलाइन पढ़ें | Faiz Ahmad Faiz Sher PDF Download
Faiz Ahmad Faiz Sher
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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म 13 फरवरी 1911 को सियालकोट में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनकी शायरी में इश्क, क्रांति, और मानवता की गहरी भावनाएं झलकती हैं। उनकी कविताओं में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की आवाज़ बुलंद होती है। फ़ैज़ की रचनाएँ जैसे “मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग” और “हम देखेंगे” ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई। उनके शब्दों की जादुई शक्ति और विचारों की गहराई ने उन्हें उर्दू साहित्य में एक अमर स्थान दिलाया।
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा “दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो हैकर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आएऔर क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लियादोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के“तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं “नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही“वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है ““गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले चले
भी आओ कि गुलशन का कारोबार चलेकब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी“इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे “आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान भूले
तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे“ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है
जिस में हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं “वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हम ने‘आप की याद आती रही रात भर”
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भरन जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहींजानता है कि वो न आएँगे
फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिलमक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले“गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगादो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं “हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगेदुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार केये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम
विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं“उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं “ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहींइक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार केआए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के ब’अद आए जो अज़ाब आएतेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थेन गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री हैसारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे“बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते “जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गईरात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए“उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है
जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे “फ़ैज़’ थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आएमेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है
मेरे नालों की गुम-शुदा आवाज़हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी
जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे“दिल से तो हर मोआमला कर के चले थे साफ़ हम
कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई “अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम“शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई ““जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी
बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या ““कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत
हैं सर भी बहुत चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे “अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से हैख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिले
शैख़-साहब से जाँ तो छुटेगीमिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन
करे दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाएअदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे
गुनाहगार-ए-नज़र को हिजाब आता है“ग़म-ए-जहाँ हो रुख़-ए-यार हो कि दस्त-ए-अदू
सुलूक जिस से किया हम ने आशिक़ाना किया “तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी
तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर देहर सदा पर लगे हैं कान यहाँ
दिल सँभाले रहो ज़बाँ की तरहहम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन
अब शहर में तेरे कोई हम सा भी कहाँ हैफिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नामइन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल
महफ़िल में कुछ चराग़ फ़रोज़ाँ हुए तो हैंइन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल
महफ़िल में कुछ चराग़ फ़रोज़ाँ हुए तो हैंतुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार बार गुज़री हैमिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने
किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतेंहम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन
तुम कोई अच्छा सा रख लो अपने वीराने का नामहम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्यामिरी चश्म-ए-तन-आसाँ को बसीरत मिल गई जब से
बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जातीयूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंगहम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन
यादों से मोअत्तर आती है अश्कों से मुनव्वर जाती हैऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
कुछ हश्र तो उन से उट्ठेगा कुछ दूर तो नाले जाएँगेमता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं नेरक़्स-ए-मय तेज़ करो साज़ की लय तेज़ करो
सू-ए-मय-ख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैंसब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैंवो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया
वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि ख़याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गयावो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया
वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि ख़याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गयाकरो कज जबीं पे सर-ए-कफ़न मिरे क़ातिलों को गुमाँ न हो
कि ग़ुरूर-ए-इश्क़ का बाँकपन पस-ए-मर्ग हम ने भुला दियागर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो
गुल खिले जाते हैं वो साया-ए-तर तो देखोफ़रेब-ए-आरज़ू की सहल-अँगारी नहीं जाती
हम अपने दिल की धड़कन को तिरी आवाज़-ए-पा समझेनहीं शिकायत-ए-हिज्राँ कि इस वसीले से
हम उन से रिश्ता-ए-दिल उस्तुवार करते रहेज़ेर-ए-लब है अभी तबस्सुम-ए-दोस्त
मुंतशिर जल्वा-ए-बहार नहींजो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
सर-ए-आम जब हुए मुद्दई तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-वफ़ा गयाजवाँ-मर्दी उसी रिफ़अत पे पहुँची
जहाँ से बुज़दिली ने जस्त की थीअपनी नज़रें बिखेर दे साक़ी
मय ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहींजल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आएसजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
”बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है”सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
”बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है”वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ ओ लब की बख़िया-गरी
फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैंवो जब भी करते हैं इस नुत्क़ ओ लब की बख़िया-गरी
फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैंसारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठेजो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गयाहाँ नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की गवाही
हाँ नग़्मागरो साज़-ए-सदा क्यूँ नहीं देतेचंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से
दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज़ का रंगहर चारागर को चारागरी से गुरेज़ था
वर्ना हमें जो दुख थे बहुत ला-दवा न थेहर चारागर को चारागरी से गुरेज़ था
वर्ना हमें जो दुख थे बहुत ला-दवा न थेबहुत मिला न मिला ज़िंदगी से ग़म क्या है
मता-ए-दर्द बहम है तो बेश-ओ-कम क्या है
| पुस्तक का विवरण / Book Details | |
| Book Name | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर ऑनलाइन पढ़ें | Faiz Ahmad Faiz Sher PDF Download |
| Author | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / Faiz Ahmad Faiz |
| Category | Best Shayari PDF Books in Hindi |
| Language | हिंदी / Hindi |
| Pages | 13 |
| Quality | Good |
| Size | 121 KB |
| Download Status | Available |
“आप अपने भविष्य को नहीं बदल सकते। लेकिन आप अपनी आदतों को बदल सकते है। तथा सुनिश्चित मानें आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देंगी।” – बर्नाड शॉ
“You cannot change your future… but, u can change your habits… And sure your habits will change your future.” – Bernard Shaw
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